श्रीमद्भागवतजी मे कितने छन्दो का प्रयोग किया गया है? शास्त्रकारों ने द्विजातियों के लिये छहों अंगों सहित सम्पूर्ण वेदों के अध्ययन का आदेश दिया है । उन्ही अंगों में से छन्द भी एक अंग है । इन्हें वेदों का चरण माना गया है - “छन्दः पादौ तु वेदस्य ।” (पा.शि. 41) “अनुष्टुभा यजति , बृहत्या गायति , गायत्र्या स्तौति ।” (पिं. सूत्रवृत्ति अ.1) अर्थात अनुष्टुप् से यजन करे , बृहती छन्द द्वारा गान करे , और गायत्री छन्द से स्तुति करे । इत्यादि विधियों का श्रवण होने से छन्द का ज्ञान परम आवश्यक सिद्ध होता है। छन्द न जानने से प्रत्यवाय भी होता है य जैसा कि छान्दोग ब्राह्मण का वचन है - “ यो ह वा अविदितार्षेयच्छन्दोदैवतविनियोगेन ब्राह्मणेन मन्त्रेण याजयति वाध्यापयति वा स स्थाणुं वच्र्छति गर्तं वा पद्यते प्रमीयते वा पापीयान् भवति यातयामान्यस्य छन्दांसि भवन्ति ।”(पिं. सूत्रवृत्ति अ.1) अर्थात् जो ऋषि, छन्द, देवता, तथा विनियोग को जाने बिना ब्राह्मणमन्त्र से यज्ञ कराता और शिष्यों को पढ़ाता है, वह ठूंठे काठ के समान हो जाता है , नरक में गिरता है , वेदोक्त आयु का पूरा उपभोग न करके बीच में ही मृत्य
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