पांडवो का अज्ञात वास कैसे और कहा पूरा हुआ? pandavas
पांडवो का अज्ञात वास

पांडवो का अज्ञात वास
द्युत क्रीडा
कौरवो और पांडवों के बिच द्युत क्रीडा मे कौरवो ने पांडवो को छल से हराया और उन्हें तेहरा वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास पूरा करना था।
अज्ञात वास कि सर्त थी कि अगर अज्ञात वास के बीच पकडे गये तो दोवारा तेहरा वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास पुरा करना होगा
वनवास के वीच भगवान श्री कृष्ण पांडवो से मिलने आया करते थे
और श्री कृष्ण का तो अर्जुन और द्रोपदी से विशेष संबंध था अर्जुन श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा के पति थे और द्रोपदी श्री कृष्ण की शखी थी। और श्री कृष्ण द्रोपदी के सखा
भगवान अपने भक्तो का अज्ञात वास मे भी ख्याल रखते है।
तेहरा वर्ष का वनवास पूरा होने के बाद जब एक वर्ष का अज्ञात वास बचा तब पांडवो ने अज्ञात वास के लिए विराट नगर चुना और वहा विराट राज कि सेवा मे एक वर्ष तक रहे
उस एक वर्ष मे बीच कौरवो ने हर राज्य मे पांडवो को खोजा पर पांडव कही भी नहीं मिले तब अंत में विराट रीज बचा था
वाहा का सेना पति कीचक कौरव ज्येष्ठ दुर्योधन का मित्र था पहले दुर्योधन ने अपने मित्र से कहा की मेरी सहायता करो और पांडवो को खोज कर मेरे पास लाओ,
कीचक ने आस्वासन दिया की मे खोजूगा कीचक को अज्ञात वास के दोरान द्रोपदी का नाम शेरंध्री था,के बारे मे पता भी चला था जब कीचक द्रोपदी को देखा तब बह कामवासना मे डूब गया और पांडवो से सर्त रखी की मे तुम्हारे बारे में किसी को नही बताऊगा पर पांचाली एक रात्रि मेरे कक्ष मे रहेगी तब।
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कीचक वध |
तो भीम ने क्रोध मे आकर कीचक का वध कर दिया तो दुर्योधन को शंका हुई की कीचक का वध करना सहज बात नही है तभी दुर्योधन ने सोचा की पांडव यही पर है और कौरव सेना लाकर विराट नगर मे चढाई कर दिया विराट नगर कि और से विराट राज का पुत्र उत्तर युद्ध करने गया और उसके साथ मे ही माहारथी अर्जुन जो की किन्नर के रूप में थे उनका नाम बृहनल्ला था राजकुमार उत्तर के सारथी वनकर गये थे लेकिन जब राजकुमार उत्तर ने कौरवो कि विशाल सेना देखी तो डर कर भाग गए तब उनके सारथी अर्जुन से उन्हें रोका और कहा कि तुम सारथी बनो और मे युद्ध करता हूँ
तब अर्जुन ने युद्ध किया और विराट नगर को बचाया उसी समय अर्जुन को श्राप से मुक्ति मिलती है और वह अपने असली रूप में आजाता है और दुर्योधन उसे छल कहता है अर्जुन ने अपसरा कि इच्छा पूरी नही की इली लिए उसने श्राप दिया था कि एक वर्ष के लिए किन्नर वन जाओ गे उसी श्राप के कारण अर्जुन किन्नर बने।
फिर अज्ञात वास पूरा होने के बाद विराट राज्य के राजकुमार उत्तर की बहन राजकुमारी उत्तरा के साथ माहारथी अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का विवाह हुआ और अभिमन्यु के पुत्र राजा परिक्षित हुए उन्का एक नाम विष्णु रात्र भी है और उनके पुत्र जनमेजय हुये और राजा जनमेजय भी बहुत पराक्रमी हुए
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