गौ माता की महिमा क्या?
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श्रीकृष्ण की प्रिय गौ माता
गौमाता की महिमा अपरंपार है। मनुष्य अगर जीवन में गौमाता को स्थान देने का संकल्प कर ले तो वह संकट से बच सकता है। मनुष्य को चाहिए कि वह गाय को मंदिरों और घरों में स्थान दे, क्योंकि गौमाता मोक्ष दिलाती है। पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है कि गाय की पूंछ छूने मात्र से मुक्ति का मार्ग खुल जाता है।
गाय की महिमा को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। मनुष्य अगर गौमाता को महत्व देना सीख ले तो गौमाता उनके दुख दूर कर देती है। गाय हमारे जीवन से जु़ड़ी है। उसके दूध से लेकर मूत्र तक का उपयोग किया जा रहा है। गौमूत्र से बनने वाली दवाएं बीमारियों को दूर करने के लिए रामबाण मानी जाती हैं।
गोपाष्टमी
गोपाष्टमी के दिन गाय का पूजन करके उनका संरक्षण करने से मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जिस घर में गौपालन किया जाता है उस घर के लोग संस्कारी और सुखी होते हैं। इसके अलावा जीवन-मरण से मोक्ष भी गौमाता ही दिलाती है। मरने से पहले गाय की पूंछ छूते हैं ताकि जीवन में किए गए पापों से मुक्ति मिले।
लोग पूजा-पाठ करके धन पाने की इच्छा रखते हैं लेकिन भाग्य बदलने वाली तो गौ-माता है। उसके दूध से जीवन मिलता है। रोज पंचगव्य का सेवन करने वाले पर तो जहर का भी असर नहीं होता और वह सभी व्याधियों से मुक्त रहता है। गाय के दूध में वे सारे तत्व मौजूद हैं, जो जीवन के लिए जरूरी हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गाय के दूध में सारे पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। मीरा जहर पीकर जीवित बच गई, क्योंकि वे पंचगव्य का सेवन करती थीं। लेकिन कृष्ण को पाने के लिए आज लोगों में मीरा जैसी भावना ही नहीं बची।
रोज सुबह गौ-दर्शन हो जाए तो समझ लें कि दिन सुधर गया, क्योंकि गौ-दर्शन के बाद और किसी के दर्शन की आवश्यकता नहीं रह जाती। लोग अपने लिए आलीशान इमारतें बना रहे हैं यदि इतना धन कमाने वाले अपनी कमाई का एक हिस्सा भी गौ सेवा और उसकी रक्षा के लिए खर्च करें तो गौमाता उनकी रक्षा करेगी इसलिए गौ-दर्शन को सबसे सर्वोत्तम माना जाता है।
गाय और ब्राह्मण कभी साथ नहीं छोड़ते हैं लेकिन आज के लोगों ने दोनों का ही साथ छोड़ दिया है। जब पांडव वन जा रहे थे तो उन्होंने भी गाय और ब्राह्मण का साथ मांगा था। समय के बदलते दौर में राम, कृष्ण और परशुराम आते रहे और उन्होंने भी गायों और संतों के उद्धार का काम किया। इसकी बड़ी महिमा सूरदास और तुलसीदास ने गौ कथा का वर्णन कर की है।
लोग दृश्य देवी की पूजा नहीं करते और अदृश्य देवता की तलाश में भटकते रहते हैं। उनको नहीं मालूम कि भविष्य में बड़ी समस्याओं का हल भी गाय से मिलने वाले उत्पादों से मिल सकता है। आने वाले दिनों में संकट के समय गौमाता ही लोगों की रक्षा करेगी। इस सच्चाई से लोग अनजान हैं।
गौ माता सर्वदेवमयी है । अथर्ववेद में रुद्रों की माता, वसुओं की दुहिता,आदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि-संज्ञा से विभूषित किया गया है।गौ सेवा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों तत्वों की प्राप्ति सम्भवबताई गई है । भारतीय शास्त्रों के अनुसार गौ में तैतीस कोटि देवताओं कावास है ।
उसकी पीठ में ब्रह्मा, गले में विष्णु और मुख में रुद्र आदि
देवताओं का निवास है । इस प्रकार सम्पूर्ण देवी-देवताओं की आराधना केवलगौ माता की सेवा से ही हो जाती है । गौ सेवा भगवत् प्राप्ति के अन्यसाधनों में से एक है । जहां भगवान मनुष्यों के इष्टदेव है, वही गौ को भगवान के इष्टदेवी माना है ।
अत: गौ सेवा से लौकिक लाभ तो मिलतें ही हैंपारलौकिक लाभ की प्राप्ति भी हो जाती है ।शास्त्रों में उल्लेख है कि गौ सेवा से मनुष्य को धन, संतान और दीर्घायुप्राप्त होती हैं ।
गाय जब संतुष्ट होती है तो वह समस्त पाप-तापों को दूर करता है।
दान में दिये जाने पर वह स्वर्ग लोक को प्राप्त करती है अत: गोधन ही वास्तव में सच्चा धन है । गौ सेवा से ही भगवान श्री कृष्ण को भगवता, महर्षि गौतम, कपिल, च्यवन सौभरि तथा आपस्तम्ब आदि को परम सिद्धि प्राप्त हुई ।
महाराजा दिलीप को रघु जैसे चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति हुई ।
गौसेवा से ही अहिंसा धर्म को सिद्ध कर भगवान महावीर एवं गौतम बुद्ध ने अहिंसा धर्म को विश्व में फैलाया । जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर भगवान आदीनाथ को ऋषभ भी कहते हैं जिनका सूचक बैल ;ऋषभ द्ध है ।
वेद-शास्त्र स्मृतियां, पुराण तथा इतिहास गौ की महिमा से ओत-प्रोत है । और यहां तक की स्वयं वेद गाय को नमन करता है ऋग्वेद में कहा गया है कि जिस स्थान पर गाय सुखपूर्वक निवास करती है वहां की रज पवित्र हो जाती है ।
पुरातन काल से ही हमारी भारतीय संस्कृति में गाय श्रद्धा का पात्र रही है । पुराण काल में एक ऐसी गाय थी की इच्छाओं की पूर्ति करती थी । इसे कामधेनू कहते हैं । यह स्वर्ग में रहती हैं और जन समाज के कल्याण के लिए मानव लोक में अवतार ले लेती है ।भारतीय संस्कृति ही नही अपितु सारे विश्व में गौ का बड़ा सम्मान रहा है ।जैसे हम गौ की पूजा करते हैं उसी प्रकार पारसी समाज के लोग सांड़ की पूजा करते हैं । सर्वविदित है कि मिश्र देश के प्राचीन सिक्कों पर बैल की मूर्ति अंकित रहती थी ।
गौभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है वह सब उसे प्राप्त होती है। स्त्रियों में भी जो गोओं की भक्त है वे मनोवांछित कामनाएं प्राप्त करलेती है ।पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या । धन चाहने वाले को धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है ।
हमारे जितने भी शास्त्र, वेद, पुराण, उपनिषद है सब के सब गौ माता कीमहिमा से भरे पड़े है, कोई भी भक्त ऐसा नहीं है जिसे गौ माता की सेवा केबिना प्रभु की प्राप्ति हुई हो, परन्तु आज का ये कलयुगी भक्त गौ माता कीसेवा तो बहुत दूर की बात है दर्शन भी नहीं करना चाहते, और फिर भगवान् की बड़ी-२ बाते करते है। पहले के गुरु जन, ऋषि-मुनि केवल गौ सेवा का ही उपदेश
देते थे, और उस्सी के फलस्वरूप उन्हें प्रभु की प्राप्ति हो जाती थी,
जितने भी भक्तो का शास्त्र में भखान है सब के मूल में सिर्फ और सिर्फ गौ माता है, जिसका हम जाने-अनजाने में आज मास खा रहे है और फिर हम हरिमिलन की आस करते है।
”बिनु गौ सेवा नहीं मिले हरी”
दूध, घी, दही के अतिरिक्त गौ का मूत्र और
गोबर भी इतने ही उपयोगी माने गये है ।
गवा मूत्रपूरीषस्य नोद्विजेत: कदाचन ।
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि गौ से ही सम्भव है ।
गौ रक्षा हिन्दु धर्म का एक प्रधान अंग माना गया है । प्राय: प्रत्येक
हिन्दु गौ को माता कहकर पुकारता है और माता समान ही उसका आदर करता है ।
जिस प्रकार कोई भी पुत्र अपनी माता के प्रति किये गये अत्याचार को सहन
नही करेगा उसी प्रकार एक सच्चा हिन्दु गौमाता के प्रति निर्दयता केव्यवहार को सहन नही करेगा ।
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