ब्राह्मण कोन है? brahman kon hai?
ब्राह्मण कोन है? यह भी एक विवादास्पद विषय है। इस पर प्राचीन समय से चर्चा चली आ रही है कि ब्राह्मण जन्म से है अर्थात् अपने वंश कुल गौत्र से या अपने कर्म से।
हम लोग तो यही धारणा बना कर चलते हैं कि ब्राह्मण अपने जन्म कुल गौत्र से है, लेकिन आज समाज मे जीवन की विचार धारा में व पिछले पौराणिक ग्रन्थों में भी ब्राह्मण की विशेष परिभाषा दी है।
ब्राह्मण वो है जो ज्ञानी, है वेद मंत्रो, इश्वर की आराधना भजन पूजन का ध्यान रखता है, सत्य धर्म मे सदा बना रहता है, किसी का अहित नही सोचता, क्षमाशील, नम्रता, तप आदि गुणो से सम्पन्न है वही ब्राह्मण है।
यजुर्वेद अध्याय ३१-मंत्र ११ मे कहा है
लोकानाम तु विवृद्धयर्थ मुख बाहु रूपादाः
ब्राह्मण क्षेत्रियं वैश्यं शूद्रं च न्यवर्तयत।
अर्थात-
संसार की उत्पत्ति के लिए ईश्वर के मुख, भुजा, पेट, तथा पैर से चार वर्ण पैदा हुये। सृष्टिकर्ता ईश्वर के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, पेट से वैश्य, और पैरो से शुद्र, एेसे चार वर्ण पैदा ।
चूंकि मुख अति पवित्र होता है इसी लिए ब्राह्मण को सब वर्णो मे श्रेष्ठ माना गया है।
महाभारत मे धर्मराज युधिष्ठिर ने सर्पराज के प्रश्न का उत्तर देते हुए हका कि-
सत्य दानं क्षमा शीलमानृशंस्यं तपो घृणा,
दृश्यते यत्र नागेन्द्र से ब्राह्मण इति स्मृतः।।
अर्थात्
सत्य, दान, क्षमाशील, नम्रता, तप करता हो व पाप से घृणा करता हो वही ब्राह्मण है। सत्मार्ग, सत्कर्म का उपदेश सब को दे और स्वयं भी सत्मार्ग पर चले है और दुष्ट मार्ग का खण्डन करते हैं वे ही सच्चे ब्राह्मण है।
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भगवान के भी आराध्य होते है ब्राह्मण |
शास्त्र कहता है -
तप, विज्ञान व परिश्रम से शूद्र भी तपस्वी परवी को प्राप्त कर सकता हैं। जो सच्चे और अच्छे कर्म करते हुए सन्मार्ग पर चालता है तथा दूसरो को भी सत्मार्ग पर चलने को कहता है वही सच्चा ब्राह्मण है।
जो षडयंत्र या ढोंग करके अपने को ब्राह्मण कहकर दूसरो से धन एकत्रित करते है दुष्कर्म मे रहते है वे ब्राह्मण नही तिलक-बिन्दी करके श्राद्ध वरसोधी मे मुर्दो के नाम पर और अपनी मक्कार तक्कारी मे ही ध्यान रखते है वे ब्राह्मण नही होते।
जो अपने मुख से दूसरो के पाप का वर्णन नही करता है तथा दूसरो को पाप करने से रोकता है वही ब्राह्मण है। जो ब्राह्मण स्नान, संध्या,नही करता, अपने स्वकर्म मे आलस्य रखता है, निवेदाभ्यास नही करता, मिथ्या भाषण करता है दुराचार के कार्य करता है वह श्रेष्ठ कुल मे पैदा होते हुए भी ब्राह्मण नही है।
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ब्राह्मण भुमी का देवता है |
अतः हमारा कहना यह है कि ब्राह्मण वंश मे ही नही कर्म से भी श्रेष्ठ होना चाहिए। यदी ब्राह्मण वंशज दुराचार के कर्य करे, दुसरो को कष्ट और दुःख पहुंचाये, सदाचार से दूर रहे नित्य भोग विलास मे व्यस्त रहे तो वह ब्राह्मण करने के लायक नहीं है।
भगवान शिव मार्कण्डेय जी से कहते है-
ब्राह्मणः साधवो शांता निस्संगा भूत वत्सलाः।
एकांताः भक्ता अस्मासु निरवैरः समदर्शिनः।।
अर्थात्-
ब्राह्मण स्वभाव से शांतचित्त, परोपकारी और अनासक्त होते है। वे समदर्शी होते है, दुःखी व्यक्तियो को सुखी बनाये के लिए सतत् प्रयत्न शील रहते है तथा हमारे ईश्वर अनन्य भक्त होते है।
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