vyas kaisa hai
vyas kaisa hota hai
व्यास सम्मान क्या है
कथा-व्यास के लक्षण >
*विरक्तो वैष्णवो विप्रो, वेदशास्त्र विशुद्धिकृत्।*
*दृष्टान्तकुशलो धीरो, वक्ता कार्योSतिनिःस्पृहः॥*
*अनेकधर्मविभ्रान्ताः, स्त्रैणाः पाखण्डवादिनः।*
*शुकशास्त्रकथोच्चारे, त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः॥*
_(स्वस्ति *श्रीपद्मपुराणे* उत्तरखण्डे श्रीमद्भागवत माहात्म्ये *श्रवणविधिकथनं* नाम षष्ठोSध्यायः॥)_
प्रथम लक्षण - वक्ता *'विरक्त'* हो। (संसार से अथवा मन से)
द्वितीय लक्षण - *वैष्णव* हो। (वाह्य दृष्टि से अथवा आतंरिक दृष्टि से)
तृतीय लक्षण - *विप्र* हो। (यह भी चर्चनीय है।)
चतुर्थ लक्षण - *वेद-शास्त्रों का विशुद्ध ज्ञाता* हो।
पञ्चम लक्षण - *दृष्टांत (शास्त्रीय) देने में कुशल* हो (अर्थात् ग्रन्थ की कथा में छिपे रहस्य को समझाने हेतु दिए गए छोटे दृष्टांत जिनसे प्रसंगान्तर प्रतीत न हो उनको सरल, सहज, सुगम बनाकर ऐसे समझाए जिससे खेत में कार्यरत कृषक अथवा पढ़े-लिखे लोगों को भी समझ में आ जाए।)
षष्ठं लक्षण - *धीर* हो अर्थात् धैर्यवान हो।
सप्तम लक्षण - *अति निःस्पृही* हो। (अर्थात् लोभी-लालची न हो, कथा की दक्षिणा तय न करे, मन धन में न हो, व्यास-गद्दी को भीख का कटोरा किसी भी प्रकार से न बनाये न ही व्यक्तिगत जीवन में लोभ की प्रवृत्ति हो, अर्थात् त्यागी हो)
अष्टम लक्षण - *अनेक धर्मों में जिसका चित्त भ्रमित न हो*। (अर्थात् स्वयं जीवन के परम-चरम लक्ष्य उस अखंड सत्य सत्ता परमात्मा को एक पल भी न भूले)
नवम लक्षण - *स्त्रीलोलुप* न हो तथा *'पुरुष'* ही हो।
दशम लक्षण - *पाखंडी न हो* अर्थात् *'उच्चारण'* तथा *'आचरण'* में यथासंभव भेद न हो।
हमारे शास्त्र ही हैं, जो हमें बताते हैं कि पवित्रतम *'व्यासपीठ'* का सच्चा अधिकारी कौन अथवा कैसा होना चाहिये।
*अगर किसी साधक में उपर्युक्त प्रमुख १० लक्षणों में से एक भी लक्षण कम है तो उसे 'व्यासपीठ' पर बैठकर इसकी मर्यादा को खण्डित नहीं करना चाहिये।*
यदि शास्त्रानुसार कोई साधक उपर्युक्त गुणों से युक्त होकर *'व्यासपीठ'* को ग्रहण करता है तो उसके द्वारा किये हुए उपदेश का प्रभाव श्रोताओं पर नि:संदेह होता है।
और भगवान के परम् धाम को प्राप्त करता है
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